Description
ख़ुलूस और मुहब्बत से भरीं ऊँचे पायदान की ग़ज़लें
‘राज़-ए-रूह’ शाइर कर्नल तिलक राज की चुनींदा ग़ज़लों का बेहतरीन गुलदस्ता है. केंद्र सरकार तथा फ़ौज में उच्च पदों पर रहकर, वे अपनी कोमल भावनाओं को शब्दों में ढालते रहे हैं. उनकी ग़ज़लें रूह की आवाज़ हैं. मानवीय संवेदनाओं से सराबोर, दिल के एकदम क़रीब से गुज़रती हुईं. इतनी आत्मीय, मानो हमारे सामने, एकदम रू-ब-रू होकर हमसे बातें करती हैं. प्रेमी दिलों से निकली करुण पुकार इनको दिलकश बनाती है, तो देश और सकल समाज के प्रति दर्ज़ चिंताएँ, इन्हें शाइरी के ऊँचे मुक़ाम तक पहुँचा देती हैं.
इन ग़ज़लों में नदी जैसी अल्हड़ता है तो सागर जैसे गंभीर भाव भी हैं. ये इतनी दिलकश हैं कि इनका हर बोल राह चलते मुसाफ़िरों को ठिठकने पर मज़बूर कर दे. उनमें झरने का संगीत, पंछियों के गीत, फूलों की महक और सुब्ह जैसी ताज़गी है. इनमें प्रेमतत्व की प्रधानता है; ऐसा प्रेम जो व्यक्तिष्ठ से ऊपर उठते-उठते समिष्ठ में ढल जाता है. ख़ुलूस और मुहब्बत इनके तेवर हैं तो ताज़गी और सादगी इनके जे़वर. एक सौ पैंसठ ग़ज़लों का यह गुलदस्ता कई रंगों के फूलों से बना है. इनकी ख़ुशबू और रंग मनमोहक हैं.
ये ग़ज़लें हमारे साथ दोस्ताना ढंग से पेश आती हैं; और अपनी सरलता से हमारा मन जीत लेती हैं. ये शाइरी के ऊँचे पायदान पर खड़ी हैं. सबसे बड़ी बात यह कि इनमें भरपूर गेयता है. संग्रह की लगभग सभी ग़ज़लों को देश के प्रसिद्ध ग़ज़ल-गायक अपनी आवाज़ देते रहे हैं. इस तरह ये बड़े-बड़े कार्यक्रमों की शोभा बन चुकी हैं. ये हमारे दिलों की बात अपनी ज़ुबानी कहती हैं. यह शे’र इस बात की ताकीद करता है—
ज़िंदगी ज़िंदगी-सी लगे
प्यार से यूँ छुआ कीजिए
ऐसे दौर में जब आदमी और मशीन का अंतर लगातार कम होता जा रहा है, ये ग़ज़लें हमें इंसान और इंसानियत के गान से परचाते हुए, मुक्त हवा के सुखद झोंकों जैसा एहसास कराती हैं. इसके लिए शाइर जनाब कर्नल तिलक राज की जितनी प्रशंसा की जाए कम है.
विपिन जैन
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