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”निश्चय ही आज अस्सी या सौ वर्
ष पहले की अपेक्षा आज स्त्रियों की हालत पहले से अच्छी है. खासकर आजादी के बाद उसकी समाजा र्थिक स्थिति में सकारात्मक बदला व आया है. बावजूद इसके हालात पूरी तरह अनु कूल नहीं हुए हैं. 1928 में एक समाज सुधारक ने लिखा था कि चूहों की मुक्ति बिल्लियों के भरोसे संभव नहीं है. न ही बकरियां लोमड़ियों के भरो से वास्तविक आजादी का सपना देख सकती हैं. कदाचित इसलिए भारतीय स्त्री आज अनेक मोर्चों पर अपनी अस्मिता की जंग स्वयं लड़ रही है. यह संघर्ष निरा बाहरी नहीं, अपितु स्त्री का अपना, अपने आप से भी है. ‘मन-मुक्ता’ की कहानियां भारतीय स्त्री के इ
सी संघर्ष की पड़ताल करती हैं. एक उत्कृष्ट कहानी संग्रह जिसकी
हर रचना रोचक, प्रेरणादायक तथा सोचने को मजबूर कर देने वाली है.
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