Description
प्रस्तुत में प्रो. अशोक शुक्ल
की दो पुस्तकों, ‘मेरा पैंतीसवां जन्मदिन’ तथा ‘माया मन छूना मन ’ की रचनाओं को लिया गया है. श् रेष्ठ साहित्य की खूबी है कि वह कभी पुराना नहीं पड़ता. उसकी प् रासंगिकता और सरोकार हमेशा बने रहते थे. प्रो. अशोक शुक्ल के व्यंग्यों पर यह बात पूर्णतः खरी उतरती है. इसलिए इनकी जितनी प्रासंगिकता तीन या चार दशक पहले, जब ये छपे थे, तब थी, उससे कहीं अधिक आज है. हमें उम् मीद है कि पाठक इन रचनाओं का भरपूर आस्वादन करेंगे.
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