हिंदी व्यंग्य में शैलीगत प्रयोगों के कारण पहचान बनाने वाले प्रो. अशोक शुक्ल की प्रस्तुत पुस्तक में उनकी वे रचनाएं संकलित हैं, जिनमें उन्होंने विभिन्न प्रयोग किए हैं. ‘जातकावली’ के अलावा उनकी विलक्षण प्रयोगधर्मिता ‘हारने के बाद’, ‘नए काव्यवाद की घोषणा’, ‘नई-नवेली नौटंकी’,‘विरहावली : भाषा टीका सहित’ जैसी रचनाओं में खुलकर प्रकट हुई है. पुस्तक का आम पाठकों के अलावा ऐसे पाठकों के लिए जो व्यंग्य के क्षेत्र में शैलीगत प्रयोगों के समर्थक हैं; तथा उन शोधार्थियों के लिए जो हिंदी व्यंग्य के विकासक्रम को समझना चाहते हैं—विशिष्ठ महत्व है.
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